Saturday 30 April 2016

हमें चाहिए ऑड सवालों के ईवन जवाब
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कोई मुझे यह तो बताये कि सरकार किसे कहते हैं? उसे जो अपने राज्य के अधिकारों के प्रति सजग हो या फिर उसे, जो पड़ोसी राज्य के जुल्मो-सितम को भी सिर झुकाकर स्वीकार कर ले। क्या उस संवैधानिक ढांचे को सरकार कहलाने का हक है जो अपने ही नागरिकों के अधिकारों की रक्षा न कर सके। शायद नहीं। लेकिन ऑड-ईवन पर दिल्ली के पड़ोसी राज्यों की सरकारों का यही हाल है। वे आंख मूंद कर बैठी है। उन्हें अपने नागरिक अधिकारों की कोई चिंता नहीं। वे तो कुंभकर्णी नींद में है। उनका पड़ोसी मुख्यमंत्री एक के बाद एक तुगलकी फरमान जारी कर रहा है और वे उसे सिर झुका कर स्वीकार कर रहीं हैं। और सारा दोष राजा को ही क्यों दोष दें? राज्य की जनता भी उतनी ही दोषी है। वैसे भी जिस राज्य की जनता उदासीन हो वहां की सरकारों से क्या अपेक्षा की सकती है। जिन राज्यों में हर रोज़ चोरी-डकैती आम बात हो वहां पड़ोसी राज्य का मुख्यमंत्री उनकी पॉकेटसे कुछ पैसे मार ले तो उन्हें क्या फर्क पड़ेगा। फर्क तो तब पड़े जब उन्हें अपने अधिकारों की चिंता हो। यथा राजा तथा प्रजा
दिल्ली में ऑड-ईवन 15 अप्रैल से दोबारा लागू है। लागू करने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह विज्ञापनों में बहा दिए गए। वह भी दिल्ली की ऑड सरकार को ईवन दिखाने के लिए। अपना चेहरा चमकाने के लिए। माननीय केजरीवाल जी जरा ये तो बताइये कि बड़े-बड़े विज्ञापनों में आपकी लंबी मुस्कुराहटों का राज़ क्या है। विज्ञापनों में तो आप कहते हैं कि जो ऑड-ईवन फॉलो न करे उसे प्यार से समझाइये।उससे लड़िए मत। झगड़िए मत। उसे फूल देकर कहिए कि शायद आज आप गलत नंबर की गाड़ी लेकर आए हैं। यदि यह दया और करुणा का भाव असली है तो फिर गलती करने वालों के चालान क्यों काटे जा रहे है। आप प्यार से समझाते रहिए और ऑड-ईवन चलाते रहिए। आपको कौन रोकता है। आप खुद ही बताइये दिल्ली में प्रदूषण चालान से रुकेगा या जागरूकता से। आश्चर्य तो तब होता है जब आप जैसा समझदार व्यक्ति इस तरह का काम करें। कहां तो आप दिल्ली पुलिस को दिन-रात कोसने में लगे रहते हैं। दिल्ली का कोई पुलिस कर्मी आपको फूटी आंख नहीं सुहाता। क्योंकि वह आपके अधीन नहीं है। क्या आप जानते हैं कि जिस दिल्ली पुलिस को आप ठुल्ला कहते हैं उनकी जेबें आपके ही आदेश से गरम हो रही हैं। आप इधर ऑड-ईवन लागू कर अपनी कॉलर टाइट करने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर चालान के नाम पर दिल्ली पुलिस लाखों रुपये कमा रही है। यह भी एक नई कहावत हो गई। करे कोई, कमाए कोई। छोड़िये भी! अब ज़रा हम इस आलेख के मूल मुद्दे की ओर चलते हैं।
क्या देश की संप्रभुता इसे ही कहते हैं। जिसमें एक राज्य अपनी मनमानी करता रहे और बाकी तमाशा देखते रहें। क्या आपको इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं कि आपके आदेश से अन्य राज्यों के नागरिकों के अधिकारों का अवहेलना हो रही है। जिस वाहन ने अग्रिम आजीवन रोड़ टैक्स भरा हो उसे आप सड़क पर चलने से कैसे रोक सकते हैं? ‘मोटर ह्वीकल्स एक्ट टैक्स जमा करने पर वाहन चालक को 24 घण्टे 366 दिन वाहन को सड़क पर चलाने की अनुमति देता है। फिर आप उस पर रोक कैसे लगा सकते हैं। रोक लगाना ही चाहते हैं तो आप दिल्ली में पंजीकृत वाहनों पर रोक लगाइये। वह आपके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। लेकिन अन्य राज्यों के वाहनों को सड़कों पर चलने से रोकने का अधिकार आपको किसने दिया। जो आपके लिए उत्तरदायी नहीं उस पर आप कैसे रोक लगा सकते हैं। ज़रा सोचिए कल कोई राज्य इस आदेश के विरोध में दिल्ली में पंजीकृत वाहनों को अपने यहां चलने से रोक दे तो फिर क्या होगा? आश्चर्य तो तब होता है जब ऐसे संवेदनशील मसले पर पड़ोसी राज्य सरकारें जागती नहीं हैं। औरन ही उस राज्य के नागरिक। किसी को अपने अधिकारों की कोई फिक्र नहीं। क्यों किसी ने इस बात पर अब तक अदालत का दरवाज़ा नहीं खटखटाया।
आप चाहें तो अपना यह तुगलकी फरमान आगे भी जारी रखें। उससे पहले कृपा कर अन्य राज्यों के वाहन चालकों कापंद्रह दिनों का टैक्स का पैसा लौटा दीजिए। ज़रा दिल्ली क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्गों की बात कीजिए। क्या वे आपके अधीन हैं? दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1,2,,8,10,24 पर आप अपना अधिकार कैसे जमा सकते हैं? वे तो केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अधीन हैं। फिर इन राष्ट्रीय राजमार्गों पर आपकी दादागीरी क्योंउस यात्री की क्या खता जिसे दिल्ली से होकर गुजरना है?  क्या वह एक राज्य से दूसरे राज्य जाने के लिए टोल टैक्स के साथ-साथ, दिल्ली में अपना चालान भी कटवाए। या फिर एक दिन दिल्ली की सीमा रेखा के बाहर खड़े हो कर दूसरे दिन का इंतज़ार करता रहे। क्या आप उसे एक दिन सीमा रेखा पर ठहरने का मुआवजा देंगे?
आपको ज्ञात होना चाहिए कि किसी भी प्रक्रिया को निर्धारित करने वाला कानून उचित, निष्पक्ष और तर्कसंगत होना चाहिए। क्या आपको नहीं लगता कि आपका यह आदेशबाकी राज्यों के नागरिकों की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में बाधक है? आप भली-भांति जानते हैं कि किसी भी भारतीय नागरिक को किसी भी अन्य राज्य क्षेत्र में आने-जाने की पूर्ण स्वतंत्रता है।किसी भी राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह जो भी कानून बनाए वह कानून न्यायोचित व तर्कसंगत हो। इसमें किसी अन्य राज्य के अधिकारों का हनन न हो। और यदि ऐसी परिस्थिति आती है तो ऐसा कानून बनाने का आग्रह केंद्र सरकार से करना चाहिए। ज्ञात रहे, भारतीय संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है न कि एक संघवादी राज्य। फिर ये तो कानून भी नहीं है। यह तो मात्र आपका आदेश भर है। एक मुहिम है। जो दिल्ली की जनता पर लागू हो सकतीहै लेकिन अन्य राज्यों के नागरिकों पर नहीं। आप ही बताइये कि फिर टोल वसूली और दिल्ली के चालान में क्या फर्क रह जाएगा।
बात इतनी भर नहीं है। इस अलावा भी और कई सुलगते सवाल हैं। नैनीताल उच्च न्यायालय कहती है कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं है तो फिर महामहिम पर ऑड-ईवन लागू क्यों नहीं होता? प्रधानमंत्री खुद को सेवक कहते हैं फिर उन पर ऑड-ईवन क्यों नहीं? प्रजा-प्रजा में भेद क्यों? सैनिकों, महिलाओं व सरकारी वाहनों को छूट किसलिए? क्या उनकी गाड़ियां प्रदूषण नहीं फैलाती? जवाब दीजिए केजरीवाल जी। ये कुछ ऑड सवाल हैं जिनके ईवन जवाब आपको देश की जनता को देने हैं।



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