Friday 1 January 2016




सुस्वागतम् 2016
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प्रिय दोस्तों, एक नया कैलेंडर वर्ष पुनः हमारे सामने हैं। जिसके 366 दिन हमेशा की तरह मात्र 12 पन्नों पर सिमटे हैं। मैं यह भी कह सकता था कि इसके 12 पन्नों पर 366 दिन बिखरे हैं। लेकिन नहीं, मैं इसे इस तरह वर्णित नहीं करना चाहता। न जानें क्यूं, ऐसा कहने पर मुझमें एक आलस्य का भाव जागता है। लगता है फिर जल्दी क्या है, आज तो पहला दिन है। जबकि अभी 365 दिन बाकी हैं। न जानें क्यूं, वर्ष के इन 366 दिनों का बिखरा स्वरूप मुझे भयाक्रांत करता है। लगता है मानों हम एकबद्ध नहीं हैं। अपनी इच्छा और सपनों को लेकर। लेकिन वहीं दूसरी ओर जब मैं इस वाक्य को पलट कर कहता हूं तो मन में एक संगठन, एक सशक्तता का बोध होता है। जिसमें हमें हमारा अस्तित्व सुगठित और सुदृड नज़र आता है। लगता है कि हम आज भी प्रतिबद्ध हैं किसी कार्य को पूरा करने में। पूरी तरह सक्षम है। एक फौजी कि तरह। जिसके लिए सिर्फ एक सीमा रेखा होती है। फिर वह चाहे कितनी ही लम्बी क्यों न हो। केवल एक मिशन होता है। फिर वह चाहे कितना ही बड़ा क्यूं न हो। संभवतः हमारे लिए भी यह मात्र एक वर्ष है। बारह महीने या 366 दिन नहीं। ज़रा इसे नया साल या वर्ष 2016 कहने के बजाए मात्र एक साल कह कर देखिए। देखिए ऐसा कहते ही आपमें कैसी चेतना जागती है। मेरा निवेदन है, जब आप स्वयं चेतना से भर उठें तब दूसरों को शुभकामनाएं दीजिए। फिर देखिए आपकी शुभकामनाओं का असर। आपकी दी शुभकामनाओं से आपका स्नेही कैसे जाग उठता है। ऐसा हुआ तब लगेगा हमारी-आपकी शुभकामनाएं असल में फलिभूत हुई।

शायद बीता कल पिछला सबकुछ समेटने का दिन रहा होगा लेकिन आज का दिन वैसा नहीं है। डीजे की धुन पर नाचने की रात अब बीत चुकि। अब नया सवेरा खिला है। नव चेतना लिए। नई चुनौतियों से भरा। आज सिंहावलोकन का दिन नहीं है। आज नए संकल्प पथ पर चलने का दिन है। जो हुआ सो हुआ। आज से हमें एक नई इबारत लिखनी है। आज यह सोचने का समय नहीं है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यूं मारा। न ही ये जानने का समय है कि आलिया भट्ट का सामान्य ज्ञान बेहतर हुआ या नहीं। कपिल का कॉमेडी नाईट कब बंद हो रहा है या फिर गंभीर की धोनी से हाथ मिलाने की वजह जानना। अब सलमान शादी करें या न करें हमें क्या। अब संजय लीला भंसाली ने सौ करोड़ कमाए या शाहरुख खान ने.. इस जीके को याद रखना आज कोई जरूरी नहीं है ।
यह सोचने का समय भी आज नहीं है कि केजरीवाल ने क्या-क्या कहा था। राहुल गांधी ने बीते साल क्या किया। मोदी जी ने कितने कपड़े बदले और अन्ना ने कितने बयान। कितनों ने पुरस्कार लौटाए और कितनों ने असहिष्णुता पर अपने रंग दिखाए।

शायद, इसी सोच के साथ मैं यह खाली-पीली ब्लॉग शुरू कर रहा हूं। जिससे आप वर्तमान घटनाक्रमों को एक अलग नज़र से देख सकें। यह नाम मेरे जीवन में एक मील के पत्थर की तरह है। जिसने मुझे बतौर कार्टूनिस्ट एक पहचान दी है। आज तक वह समाचार पत्रों में प्रकाशित महज एक कार्टून कॉलम था। लेकिन आज वह एक ब्लॉग की शक्ल ले रहा है। संभवतः आने वाले महीनों में एक वेबसाईट की शक्ल भी ले।

बीते कई वर्षों से मेरे कुछ सीनीयर्स, मित्र, कला संकाय के छात्र मुझसे यह एक ऐसी साईट शुरू करने का आग्रह करते रहे। जहां वे मेरा समूचा काम देख सकें। जिस पर कार्टून, चित्रकला, ग्राफिक्स, पेंटिंग्स, फोटोग्राफी, लेखन आदी को एक साथ देख-पढ़ सकें। खाली-पीली नाम का यह ब्लॉग एक ऐसी ही पहल है। जिस पर आप राजनीतिक, सामाजिक विषयों पर बने कार्टून देख सकेंगे। साथ ही कला के विभिन्न रूपकों के बारे में भी जान सकेंगे। दुख की बात है कि आज देश में कोई भी ऐसा ब्लॉग या साईट नहीं है। जहां कला के विभिन्न आयामों की एक साथ चर्चा होती हो। अभी तो यह महज़ शुरुआत है। मेरा यह प्रयास होगा कि आगे मैं उस कमी को पूरा कर सकूं। मैंने अभी इस ब्लॉग के कुछ ही ऑप्शन खोले हैं, बाकी के व्यवस्थित होते ही उन्हें भी खोल दूंगा। आपको यह मेरा प्रयास कैसा लगा, मुझे जरूर सूचित करें।

जानता हूं आज आप सब बेहद व्यस्त है। ट्वीट से ज्यादा री-ट्वीट करने में। फेसबुक, वॉट्सअप पर दनादन सेल्फी व मैसेज फार्वड करने में और खुद की पोस्ट पर लाईक गिनने में। फिर भी यदि इन सबसे आपको ज़रा सी भी फुर्सत मिले तो ज़रा इस ब्लॉग पर भी आइयेगा। बंदा आपकी खिदमत कुछ अलग अंदाज में करने की कोशिश करेगा। धन्यवाद!

आपका ही
माधव जोशी
1 जनवरी 2016

3 comments:

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  2. Sir bahut acha hai sabhi apka ....
    painting, caricature, cartoon ...realy very nice....
    sahi main ab apki kala dikhayi deti hai..

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