Monday 18 January 2016

'मैं जवानों के जूते चमकाना चाहता हूं!'

मनीष गीते@भोपाल।
भारतीय सेना का जवान जब दुश्मन के सामने खड़ा हो तो आंखों में डर की जगह जीतने की चमक हो। आत्मविश्वास हो और चेहरे पर तेज इतना हो कि देखते ही दुश्मन के हौसलों से पस्त हो जाएं। अपने भारतीय सेना के जवानों को बार्डर पर चमकता और दमकता देखना चाहता हैं माधव जोशी। वे कहते हैं कि यदि अब लड़ाई हुई तो भारतीय सेना के जवानों के कदम पीछे लौटकर नहीं आए, इसलिए जवानों के बूट चमकाकर उन्हें बार्डर पर भेजना चाहते हैं।
"Indian Army"
An Artist Wish for Indian Army


प्रख्यात आर्टिस्ट माधव जोशी देश के जवानों के लिए यह नेक काम करना चाहते हैं। उनका कहना है कि हम सेना में नहीं है, लेकिन देशभक्ति हमारे सीने में है। हम किसी न किसी प्रकार से इस देश का ऋण चुका सकते हैं। हर युवा को कोई न कोई ऐसा काम करना चाहिए जो सेना भारतीय जवानों के लिए हो।


जब भाई को कारगिल बुलाया था
माधव बताते हैं कि मेरे बड़े भाई एकनाथ जोशी आर्मी में थे। जब कारगिल युद्ध के लिए उन्हें बुलावा आया तो घर के सभी लोग सिहर गए थे।



मैं भी घबराया और भाई की आंखों में देखा तो डर की जगह आंखों में गर्व की चमक थी। एक आत्मविश्वास था। यह दृश्य देख मुझे भी हिम्मत आ गई। भाई ने तत्काल ही जाने की तैयारी कर ली थी। मैंने उनकी वर्दी प्रेस की, बैज लगाए और बूट पर पालिश की। मुझे भी एक गर्व-सा महसूस होने लगा। कहीं न कहीं मैं एक देश के सिपाही को लड़ने के लिए तैयार कर रहा था।





कारगिल में रह गई थी ख्वाहिश अधूरी
कारगिल पर एक चित्रकथा बना चुके माधव बताते हैं कि बड़े भाई साहब के कारगिल युद्ध में जाने के दौरान जब मैंने भाई के बूट चमकाए तो यह ख्वाहिश मन में आई, लेकिन हालात के कारण मैं नहीं जा पाया। उसी समय मैंने ठान लिया था कि अब मौका मिला तो मैं बार्डर पर जाने वाले सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए उनके बूट चमकाना चाहता हूं।


सुखद था सेना का बुलावा
सेना में लांसनायक रहे एकनाथ जोशी बताते हैं कि जब संसद पर हमला हुआ और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बयान आया कि अब होगी आरपार की लड़ाई। जोशी बताते हैं कि मेरे लिए कारगिल और संसद पर हमले के दौरान सेना का बुलावा सुखद था। गर्व हुआ कि अब देख के लिए कुछ कर गुजरने का मौका आया है।


कविता में युद्ध का हर्ष
गरमागर्मी के बाद हम उस हालात से निकल गए और थोड़े दिन बाद जब छुट्टी मिली तो युद्ध पर एक कविता लिख दी।

प्रस्तुत है एकनाथ जोशी की कविता

रिकॉल
बाइस तारीख पांचवा महीना, बजी जब घंटी रात
हुक्म मिला मुझे 'जोशी' तुम्हारी, छुट्टी खत्म है आज
देखो अब न देर लगाओ, झटपट सीमा पर तुम आओ
छोड़ आए हम भी फौरन, अपने सारे काज

संदेशा जब हमने पाया, सुनते ही बस मन हर्षाया
मातृभूमि की रक्षा खातिर, चलो ये बन्दा काम तो आया
नींद हमें उस रात न आई, करवट बदलकर रात बिताई
पल-पल लगे है जैसे खाई, घंटों लगे है महीनों भाई

ज्योतिषी को हाथ दिखआया, हाथ देखकर वो चकराया
राज उसने फिर बतलाया, विदेश भ्रमण का अवसर आया

पशिच्म में तुम जाओगे, हाहाकार मचागे
मौत का तांडव कर के भी तुम, शांति-दूत कहलाओगे

घर वाले थे सब हर्षाये, जो देखो वह तिलक लगाये
नन्हा-नन्हा बच्चा आता टाटा करके यह बतलाता
देश है साथ तुम्हारे, पाक चाहे कितना ललकारे
अब के ऐसी देना मात, उठा सके न फिर वो आंख।

अब सीमा पर हम हैं आये, दुश्मन की है घाट लगाये
गर जो दुश्मन बाज न आया, अब जो उसने हमें उकसाया
इस सरहद से घुसकर हम, उस पार निकल जावेंगे
बातों से जो मान न रहा, उसे लातों से मनवायेंगे।


सौजन्य पत्रिका
Posted: 2016-01-15

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