Sunday 28 February 2016

बजट के इस रंग को भी गौर से देखें




बजट के इस रंग को भी गौर से देखें

आज देश के आम बजट का दिन है। कुछ ही घंटों में वित्तमंत्री इसे सार्वजनिक करेंगे। इससे पहले कि वे अपनी चमचमाती अटैची से बजट भाषण निकालकर घण्टा- दो घण्टा हमें बोर करें, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं। चाहता हूं कि आप इस बार बजट को एक अलग नज़रिये से देखें। अमूमन, हम सभी बजट में अपने फायदे की बातें पहले देखा करते हैं। जिसे देखना भी चाहिए। आख़िर वह हम सब की जेब से जुड़ा मामला है। लेकिन मैं चाहता हूं कि आप इसके अतिरिक्त भी बजट को देखें। एक अलग रंग आपको इसमें नज़र आएगा। वह रंग है मीडिया की कलात्मक सोच का। बजट के प्रस्तुतिकरण का। वह रंग, जो हम सबके सामने बिखरा होता है। टेलिविजन और अखबारों में। जो हम सबको अच्छा भी लगता है। बावजूद इसके हम उस पर कभी चर्चा नहीं करते। क्योंकि हम बजट को केवल नफे-नुकसान के नजरिए से देखते हैं। अतः इस बार आप मीडिया की बजट कवरेज पर खासा ध्यान रखें। देखें कहीं कोई रंग छूट न जाए। आपको इसमें एक प्रतिस्पर्धा नज़र आएगी। खुद को बेहतर साबित करने की प्रतिस्पर्धा। ऐसी स्पर्धा जिसमें देश के जाने माने मीडिया आर्टिस्ट अपना हुनर दिखाते होंगे।
सचमुच, बजट बनाना कोई आसान काम नहीं। सरकार का वित्त विभाग महीनों की मश्क्कत के बाद इसे तैयार करता है। करीब सौ लोगों की टीम दस दिनों तक नॉर्थ ब्लॉक में कैद कर दी जाती है। बजट लिखने से छपने तक सारी प्रक्रिया को पूरी तरह से गोपनीय रखा जाता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी इन्हीं दिनों में देश का मीडिया भी अपनी अभूतपूर्व तैयारी में जुटा होता है। वह भी वैसी ही गोपनीयता के साथ। कमर कसकर रेलआम बजट का इंतज़ार करता है। तैयारियों के वे दस दिन किसी भी मीडियाकर्मी के लिए सूकून भरे नहीं कहे जा कहे सकते। जहां एक ओर ज्यादा से ज्यादा कंटेंट जुटाने का काम संपादकीय विभाग पर होता है वहीं पेश किए जाने वाले बजट का प्रस्तुतीकरण कला विभाग को देखना होता है। मजे की बात यह है कि प्रत्येक संपादक बजट अपने नजरिए से देखता है। और उसी नज़रिए को ध्यान में रख कला विभाग को अपना काम करना होता है।         
एक मीडिया आर्टिस्ट के नाते सालों तक मैं भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं। प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों ही धाराओं में बजट की तैयारियों को करीब से देखा है। उस दौरान काम के दबाव को महसूस किया है। बीते पच्चीस सालों में बहुत कुछ बदला है। जहां इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आज बजट को नए लुक, नए अंदाज में आपके सामने पेश करता दिखाई देगा, वहीं कल के समाचार पत्र अपने अलग ले-आउट के साथ आपका बजट आप तक पहुंचाएंगे। कल सुबह के अख़बार जब आप अपने हाथों में लें तो जरा गौर से देखिए। देश के नामचीन मीडिया आर्टिस्ट आप के बजट पर किस तरह अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे होंगे। एक ऐसी प्रदर्शनी आपके हाथों में होगी जिसे किसी कलादीर्घा की आवश्यकता नहीं है। नज़र रखिएगा कि किस तरह टीवी चैनलों के ग्राफिक डिज़ाइनर आप तक आपका बजट पहुंचा रहे हैं। जहां समाचार पत्रों में आप ग्राफिक्स, इलस्ट्रेशन, कार्टून देखेंगे, वहीं टीवी चैनलों के ग्राफिक प्लेट से लेकर टिकर तक सबकुछ आपको बदला-बदला नज़र आएगा।
इस सबके बावजूद सरकार और मीडिया में एक बहुत बड़ा फर्क है। जहां बजट बनने से पहले वित्तमंत्री स्वयं अपने हाथों से सभी बजट कर्मियों को मूंग का हलुवा खिलाते हैं, वहीं मीडिया में ऐसी कोई प्रथा नहीं है। यहां तो बजट की ठीक-ठाक प्रस्तुति पर ही संपादक से कोई आशा की जा सकती है। अन्यथा कलाकारों का कोर्ट मार्शल किया जा सकता है।





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